तेरे पास आने को...
तेरे पास आने को जी चाहता है;
नए ज़ख़्म खाने को जी चाहता है;
ज़माना मेरा आज़माया हुआ है;
तुझे आज़माने को जी चाहता है;
वही बात रह-रह के याद आ रही है;
जिसे भूल जाने को जी चाहता है;
लबों पे मेरे खिलते है तब्बसुम;
जब आंसू बहाने को जी चाहता है।;
तक्कल्लुफ़ ना कर आज बर्क-ए-तस्सल्ली;
नशेमन जलाने को जी चाहता है;
रुख-ए-जिंदगी से नक़ाबीन उलट कर;
हकीकत दिखाने को जी चाहता है।
---->रवि.
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