रविवार, 3 नवंबर 2013

तेरे पास आने को...


तेरे पास आने को...

तेरे पास आने को जी चाहता है;
नए ज़ख़्म खाने को जी चाहता है;

ज़माना मेरा आज़माया हुआ है;
तुझे आज़माने को जी चाहता है;

वही बात रह-रह के याद आ रही है;
जिसे भूल जाने को जी चाहता है;

लबों पे मेरे खिलते है तब्बसुम;
जब आंसू बहाने को जी चाहता है।;

तक्कल्लुफ़ ना कर आज बर्क-ए-तस्सल्ली;
नशेमन जलाने को जी चाहता है;

रुख-ए-जिंदगी से नक़ाबीन उलट कर;
हकीकत दिखाने को जी चाहता है।


---->रवि.

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