शनिवार, 18 जुलाई 2020

ग़ज़ल - तेरी चाहत के ख़्वाब : Teri Chahat ke Khwab


तेरी चाहत के ख्वाब हैं अब तक ,
महके- महके गुलाब हैं अब तक ।

हम   भी लेकर  सवाल    बैठे हैं ,
पर  न मिलते जवाब हैं अब तक ।

चूमती   जब बहार    गुलशन को ,
क्यों न खिलते शबाब हैं अब तक ।

दे दिया   आपको जिगर दिल भी ,
फिर  भी रूठे  जनाब हैं अब तक ।

जान   पर  खेल   कर  गया  कोई ,
पर  न  उठते   हिजाब  हैं अब तक ।

चल दिये ,हो गये हैं   सब  चुकता ,
जो भी जिसके हिसाब हैं अब तक ।

कोई      बेगम    नज़र नहीं आती ,
बन    के बैठे   नवाब   हैं अब तक ।

आस  मत छोड़ना ' सुमन' कल की ,
चाहे   मौसम   ख़राब  हैं   अब तक ।
---+}R@vi.


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