शनिवार, 11 जुलाई 2020

कब हाथ में तेरा हाथ नहीं

कब याद मे तेरा साथ नहीं, कब हाथ में तेरा हाथ नहीं;
साद शुक्र की अपनी रातो में अब हिज्र की कोई रात नहीं;

मुश्किल है अगर हालत वह, दिल बेच आए, जा दे आए;
दिल वालो कूचा-ए-जाना में, क्या ऐसे भी हालात नहीं;

जिस धज से कोई मकतल में गया, वो शान सलामत रहती है;
ये जान तो आनी-जानी है, इस जान की तो कोई बात नहीं;

मैदान-ए-वफ़ा दरबार नहीं, या नाम-ओ-नसब की पूछ कहाँ;
आशिक तो किसी का नाम नहीं, कुछ इश्क किसी की जात नहीं;

गर बाज़ी इश्क की बाज़ी है, ओ चाहो लगा दो दर कैसा;
गर जीत गए तो क्या कहने, हारे भी तो बाज़ी मात नहीं।
---+}R@vi. 

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