शनिवार, 15 सितंबर 2018

बिछड़ के तुम से ज़िंदगी सज़ा लगती है,
यह साँस भी जैसे मुझ से खफा लगती है,

तड़प उठता हूँ मैं दर्द के मारे,
ज़ख़्मों को जब तेरे शहर की हवा लगती है,

अगर उम्मीद-ए-वफ़ा करूँ तो किस से करूँ,
मुझको तो मेरी ज़िंदगी भी बेवफा लगती है!!
---+}R@vi.

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