शनिवार, 26 अक्टूबर 2013

गजल


गजल  

घुरि फिरि ऐना नै निहारल करू
रूपक नै किस्सा बघारल करू

बाँचब नै नेहक त' मारल प्रिये
खंजर नै नैनक उतारल करू

सजि गुजि नित दिन दहाड़े अहाँ
अँतरी ने लोकक ससारल करू

बड मारुक ई केश कारी सघन
फन्दा नै एकर पसारल करू

नेहक टा राजीव मारल मतल
बिसरा नै प्रियतम गछारल करू 


----> R@vi.

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