घर कितने हैँ मुझे ये बता, मकान बहुत हैँ।
इंसानियत कितनो मेँ है, इंसान बहुत हैँ॥
इंसानियत कितनो मेँ है, इंसान बहुत हैँ॥
मुझे दोस्तोँ की कभी, जरूरत नहीँ रही।
दुश्मन मेरे रहे मुझ पे, मेहरबान बहुत हैँ॥
दुनिया की रौनकोँ पे न जा,झूठ है, धोखा है।
बीमार, भूखे, नंगे,बेजुबान बहुत हैँ॥
कितना भी लुटोँ धन,कभी पुरे नहीँ होँगे।
निश्चित है उम्र हरेक की,अरमान बहुत हैँ॥
कैसे हूँ बेटे-बेटी को,बाइक, मोबाइल, कोचिंग।
हर घर मेँ बाप सोचकर,परेशान बहुत हैँ॥
युवा बेटी-बेटोँ मत करो,नित नई दोस्ती।
मानो न मानो दुनिया मेँ,बेइमान बहुत हैँ॥
मैँ शुक्रिया करूँ तेरा,तो कहाँ तक करूँ।
मैने सर झुकाया कम,तेरे एहसान बहुत हैँ॥
मैने सर झुकाया कम,तेरे एहसान बहुत हैँ॥
---> रवि .
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