!!!! एक नई ग़ज़ल !!!!
कुछ तूफ़ान का है कुसूर , कुछ दिए की खता है ,
जलाता भी हवा है के बुझाता भी हवा है |
जखम भरने ही न दी जाये तो फिर बात अलग है ,
वरना तो ज़माने में हर मर्ज़ की दावा है|
बंद कमरों के गुनाहों के भी चास्मदीद कई हैं ,
तुझसे (Conscience) न छुपा है कुछ , सब उसको (God) पता है |
रंजिश मिटने की कोशिश में मोहाबत ही मिट गयी ,
कभी मैं उस से खफा हूँ , कभी वो मुझसे खफा है |
जो कुछ तुझे मिला है अच्छा या बुरा है ,
करले कुबूल हँसके ,के मालिक की रज़ा है |
~~~> रवि.
कुछ तूफ़ान का है कुसूर , कुछ दिए की खता है ,
जलाता भी हवा है के बुझाता भी हवा है |
जखम भरने ही न दी जाये तो फिर बात अलग है ,
वरना तो ज़माने में हर मर्ज़ की दावा है|
बंद कमरों के गुनाहों के भी चास्मदीद कई हैं ,
तुझसे (Conscience) न छुपा है कुछ , सब उसको (God) पता है |
रंजिश मिटने की कोशिश में मोहाबत ही मिट गयी ,
कभी मैं उस से खफा हूँ , कभी वो मुझसे खफा है |
जो कुछ तुझे मिला है अच्छा या बुरा है ,
करले कुबूल हँसके ,के मालिक की रज़ा है |
~~~> रवि.
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