मंगलवार, 29 अक्टूबर 2013

Maithili Ghazal: भूख छल प्रेमक #ravi1057

गजल

भूख छल प्रेमक भूखले रहि गेलहुँ
याह सोचिक हम टूटले रहि गेलहुँ

एक ओकर खातिर बनल सभ बैरी
सभसँ जिनगी भरि छूटले रहि गेलहुँ

पटकि देलक घैला जकाँ हिय एना
जाहि कारण हम फूटले रहि गेलहुँ

भरल प्रेमक कोठी, परल खाली छै
प्रेम बिन ओकर लूटले रहि गेलहुँ

  शंकरक  बखरा परल नीरस जिनगी
शोक संगे नित जूटले रहि गेलहुँ
-----> रवि .



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