गजल
भूख छल प्रेमक भूखले रहि गेलहुँ
याह सोचिक हम टूटले रहि गेलहुँ
एक ओकर खातिर बनल सभ बैरी
सभसँ जिनगी भरि छूटले रहि गेलहुँ
पटकि देलक घैला जकाँ हिय एना
जाहि कारण हम फूटले रहि गेलहुँ
भरल प्रेमक कोठी, परल खाली छै
प्रेम बिन ओकर लूटले रहि गेलहुँ
शंकरक बखरा परल नीरस जिनगी
शोक संगे नित जूटले रहि गेलहुँ
-----> रवि .
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